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Good Friday इस दिन का महत्व प्रभु यीशु को दी गई यातनाओं को याद करने...

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Good Friday एक ऐसा दिन जब ईसा मसीह ने अपने भक्तों के लिए बलिदान देकर निःस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा का उदाहरण प्रस्तुत किया। ईसा मसीह ने विरोध और यातनाएँ सहते हुए अपने प्राण त्याग दिए उन्हीं की आराधना और वचनों के माध्यम से इंसानियत की राह पर चलने का ज्ञान देने वाला दिन है गुड फ्राइडे।

ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का हरेक का अंदाज अलहदा होता है। Good Friday तक कोई ईसाई अनुयायी 40 दिन के उपवास रख रहा है तो कोई केवल शुक्रवार को व्रत रखकर प्रार्थना कर रहा है। प्रभु यीशु के वचनों को अमल करने का दिन है Good Friday.


इस संबंध में बिशप चाको कहते हैं कि यह बड़ी विडंबना है कि आज भी बहुत से लोग Good Friday व इसके महत्व से अनभिज्ञ हैं। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि इसे कहा तो Good Friday जाता है लेकिन यह सबसे दुखदयी दिन रहा जब प्रभु यीशु को क्रॉस पर चढ़ाया गया था और उन्होंने प्राण त्यागे थे।

इस दिन का महत्व प्रभु यीशु को दी गई यातनाओं को याद करने और उनके वचनों पर अमल करने का है। जहाँ तक प्रवचन देने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर फादर आदि को बुलाया जाता है तो इसकी वजह यही है कि लोग धर्म-आध्यात्म के प्रति रुचि लें।

रेवरेन्ट विश्वास पी. मसीह कहते हैं कि धर्म विज्ञान में उपवास को इतना महत्वपूर्ण नहीं बताया गया जितना सच्चाई को। मैं चालीस दिन उपवास करने के बजाए शुक्रवार को ही व्रत करता हूँ। उपवास के साथ प्रार्थना जरूरी है इस बात का विशेष ध्यान रखता हूँ। विडंबना तो यह है कि कई लोग हमें गुड फ्रायडे (Good Friday) की बधाई देते हैं जबकि यह अनुचित है।

इस दिन यीशु को क्रॉस पर चढ़ाया गया था। यीशु के बलिदान देने की वजह से ही इस दिन को 'गुड' कहते हैं। ग्लोबलाइजेशन के दौर में क्रिसमस को तो प्रचार मिला पर Good friday को नहीं क्योंकि इस दिन के साथ ग्लैमर जो नहीं जुड़ा है। इसी प्रकार ईस्टर ईसाइयों की नींव है। इस दिन प्रभु यीशु का पुनरुत्थान हुआ था।

टिबिन थॉमस बताते हैं कि उन्होंने करीब 25 दिन तक उपवास किए लेकिन इसके बाद वे इसे जारी नहीं रख सके। कार्य की अधिकता और सेहत का ध्यान रखते हुए उपवास छोड़ना पड़ा। वे कहते हैं कि उपवास करने से पहले यही सोच थी कि भोजन का मोह त्यागा जा सके। मैं भले ही उपवास नहीं कर रहा पर यह नियम लिया है कि इन दिनों दूध और माँसाहार का सेवन नहीं करूँगा।

समाजसेवी संजीव माइकल कहते हैं कि इस बार वे केवल शुक्रवार को ही व्रत कर रहे हैं। वे इसका उद्देश्य बताते हुए कहते हैं कि इस तरह से आत्ममूल्यांकन किया जा सकता है। यह चालीस दिन ही नहीं बल्कि सभी दिनों को मैं महत्व देता हूँ और यह सोचता हूँ कि परमेश्वर हमसे क्या चाहता है और उसके बताए मार्ग पर किस तरह चलकर उस तक कैसे पहुँचा जाए।

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